सामाजिक संगठन का कार्य ही निष्‍काम कर्मयोग है।

धुन के पक्‍के कर्मशील मानव
 जिस पथ पर बढ जाते हैं, एक बार तो नर्क को स्‍वर्ग बना दिखलाते हैं। और यह सब हो सकता है, सामाजिक संगठन की पवित्रता से।
संगठन शब्‍द का निर्माण स्‍वत बहुउद्देशीय होकर इसके हर शब्‍द में कर्म करने के बहुमूल्‍य संदेश छिपे हुए हैं। इनको अपनाकर समाज को उन्‍नति और सफलता के शिखर पर प्रतिस्‍थापित किया जा सकता है। आओ जानें  सं -से संयम,  ग - से गतिशीलता , ठ- से ठहराव (द्रडता),  -से नव स्रजन। 
     सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले सदस्‍यों को संयमित रहते हुए अपने कर्त्‍तव्‍यों को ईमानदारी से गतिशीलता देकर अहंकार का प्रदर्शन न कर सदैव नवस्रजन के भाव से ओतप्रोत रहना चाहिये जिसे हम गीता की भावधारा में निष्‍काम कर्मयोग ही कहेगें।
     सामाजिक संगठन को प्रभावी रूप देने के लिये निष्‍काम भाव से सभी की जिम्‍मेदारी है कि उसके संविधान में निहित नियमों का पालन करना चाहिए और इसके लिये श्रध्‍दा तथा समर्पण के बीज मन की उर्वरा भूमि पर अंकुरित हो जाना चाहिए । संगठन में सामयिक अन्‍तराल के बीच ही दो विचार धाराओं का प्रवाह निकल कर वैचारिक भिन्‍नता और आपसी समन्‍वय न होने के आधारहीन धरातल पर प्रवाहित होने लगता है । इसका सीधा सा अर्थ है कि 'मानव जिस वातावरण में पुष्पित पल्‍लवित होता है उसकी विचार धारा भी वैसी ही निर्मित हो जाती है।'  इस प्रकार वैचारिक भिन्‍नता उत्‍पन्‍न होना स्‍वाभाविक है ।
    कडवाहट और मिठास का गहरा संबंध है। कहा है कि कडवी भेषज बिन पिये मिटे न तन की ताप । नीम कितना भी कडवा हो पर उसके सभी अंग कडवाहट के बाद भी परहितकारी हैं। आवश्‍यकता है कडवाहट में मिठास के तत्‍वों को खोजने की। नदी भी तभी तक ऊफान पर रहती है जब तक सागर की गोद में समाधि नहीं ले लेती। यही हाल सामाजिक संगठनों का भी है । वे भी तभी तक वैचारिक भिन्‍नता का तुफान खडा करते है जब तक की समाज के अनुभवी वरिष्‍ठजन उस ऊफनती हुई विचारधारा को समन्‍वय के चप्‍पु से शान्‍त नहीं कर देते। स्‍वयं पर स्‍वयं का अनुशासन ही संगठन को मजबूती दे सकता है। यह सही है कि सकारात्‍मक सोच के नीचे नकारात्‍मक सोच भी पनप सकती है इससे घबराने की आवश्‍यकता नही है। निरर्थक प्रकार की आलोचनाओं से टक्‍कर लेने के लिये हमें आलोचना के स्‍थान पर समालोचनात्‍मक प्रव्रत्ति को शक्तिशाली बनाना होगा तभी सामाजिक संगठन को मजबूती के साथ सत्‍यमेव जयते का आधार दे सकते हैं।
    नाव अपनी नदी अपनी किनारे भी तो अपने ही हैं। इनसे रूख को मोडना इन्‍सा की सबसे बडी गलती है। मन मे मौज रखो ,सोंच सकारात्‍मक हो ,कर्म का भाव निष्‍काम होगा तो मुहब्‍बत भी मिलेगी यहीं ।

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