भगवान- श्री गोविन्दराय जी - श्री माधवराय जी
सिध्दपुर ग्राम के मुखिया
लेखक
भालचंद भाई ऐस. ठाकुर
मंत्री
श्री गोविंद माधव मंदिर कमेटी सिध्दपुर
गुजराती से अनुवादित
द्वारा श्रीमति मंजुला पंकज जोशी उज्जैन
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सिध्दपुर अति प्राचीन धार्मिक. पवित्र और एतिहासिक नगरी
यहाँ श्री कर्दम प्रजापति श्री देवहुति माता तथा श्री कपिलमुनि का आश्रम, बिन्दुसरोवर तथा अल्पा सरोवर की है। सांख्य शास्त्र के प्रणेता श्री कपिल भगवान की मां देवहुति का उध्दार इसी जगह में हुआ है । ऐसी पवित्र भूमि का उल्लेख श्रीमद भागवत जी के दूसरे अध्याय में है। सिध्दपुर उसी समय से श्री मातृ-गया तीर्थ स्थान के रूप मे पूरे जगत में प्रसिध्द है । पूरे भारत भर से मातृ गया में श्राध्द करने हेतु हिन्दू लोग यहां आते हैं। उसमें जब पितृ मास जैसे कार्तिक, चैत्र, और भादव मास में तो खूब श्रध्दा के साथ माता का मोक्ष [श्राद्ध] करने लोग आते हैं। यहां मां सरस्वती भी गुप्त रूप से हाजिर है। लगभग 1978 के बाद तो सरस्वती लुप्त हो गई है । उसके पहले सरस्वती चार किनारों में बहती थी । लेकिन आगे बांध बंध जाने के कारण पानी नहीं पहुंचता है, फिर भी लोगों की श्रध्दा में थोडा सा भी अन्तर नहीं आया। मां सरस्वती नदी के किनारे पर श्री अरडेश्वर महादेव, श्री ब्रम्हांडेश्वर महादेव, श्री वाल्केश्वर महादेव, श्री सिध्दनाथ महादेव, श्री हाटकेश्वर महादेव,श्री बटेश्वर महादेव , श्री सरस्वती माता तथा हिंगलाज माता और भव्य रूद्रमहालय का अति प्राचीन मंदिर है। श्री बरडेश्वर महादेव के मंदिर परिसर में सिध्दपुर के संत श्री देवशंकर बापा का भव्य आश्रम है।
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मोर्य काल की हें गोविंद-माधव की मूर्तियाँ
इस मंदिर की स्थापना ही भगवान का चमत्कार है। श्री गोविंदराय जी और श्री माधवराय जी भगवान की दोनों मूर्तियां अलग अलग स्थान से प्राप्त हुई है। लगभग 215 वर्ष पहले सिध्दपुर के आसपास के किसान अनाज कपास आदि बेचने हेतु सिध्दपुर के बाजार में आते थे । एक किसान की कपास की गाडी में एकदम वजन बढ जाता है । मां सरस्वती के पट में किसान व्दारा गाडी में तलाश करने पर श्री माधवराय जी मूर्ति कपास में से मिली, उस सफेद मारबल की बनी मूर्ति को किसान ने नदी के घाट पर उतारी । उस गांव के लोगों को पता चला तो गांव के लोगों ने मूर्ति को गांव में लाकर मंदिर बनाने की शुरूआत की।
उसी समय श्री गोविंदराय जी की मूर्ति बिन्दू सरोवर पीछे जंगल में मिली । लोगों का यह कहना है कि कच्छ के एक किसान के खेत में यह मूर्ति गढी हुई पाई थी । भगवान ने किसान के स्वप्न में आकर कहा। कुछ खुदाई के बाद मूर्ति को बाहर निकाल कर सिध्दपुर बिन्दु सरोवर के जंगल में रखी । गांव के लोगों को यह खबर मालूम पडने पर मूर्ति लाकर त्रिवेदी परिवार के बडे बुजुर्गो ने भगवान का मंदिर बनाकर दोनों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके भव्य मंदिर की स्थापना की। इसी कारण इस परिवार सदस्यों को वारसा पाने का हक है। इतिहासकारों ने बताया की चंद्रगुप्त और चाणक्य के समय की ये मूर्तियां है। भगवान के आयुध शंख्,चक्र , गदा और पदम का उपर से अनुमान होता है।
वार्षिक उत्सव-पूजन की व्यवस्था:-
हाल ही में मंदिर की व्यवस्था सिध्दपुर श्री हिन्दु महाराज व्दारा स्वतन्त्र रूप से समिति का निर्माण करने में आया है । कितने ही वर्षो से श्री गोविन्द माधव मंदिर कमेटी पूजन और सारी व्यवस्था बहुत अच्छे तरीके से कर रही थी । यह कमेटी चेरिटी कमिश्नर के कार्यालय में रजीस्टर्ड ट्रस्ट है। यह कमेटी श्रीजी का नीचे लिखे अनुसार उत्सव पूजन आदि भव्य रूप में करती है।
- अन्नकूट नव वर्ष कार्तिक सुदी प्रतिपदा ।
- श्रीजी को पाटोत्सव जन्म दिवस माह सुदी त्रयोदशी ।
- जन्माष्टमी श्रावण वदी अष्टमी ।
- रामनवमी चैत्र सुदी नवमी अन्नकूट ।
- धुलेटी/ होली के दूसरे दिन फागुन वदि प्रतिपदा ।
- वामन जयंति भादवा सूदी एकादशी, अन्नकुट ।
- न्रसिंह जयन्ती वैशाख सुदी चतुर्दशी अन्नकुट ।
- रथयात्रा अषाढ सुदी द्वितीय ।
उपरोक्त उत्सवों में रथयात्रा तथा धुलेटी में श्रीजी की शोभा यात्रा गांव में निकलती है। इन दो दिनों में भगवान सारे शहर की परिक्रमा के लिए निकलते हैं। सभी शहर वासियों को दर्शन का लाभ मिलता है। सिध्दपुर में लगभग 65 वर्षो से श्री गोविन्द माधव भगवान की रथयात्रा चांदी के सुशोभित कलात्मक रथ् में निकलती है। यह चांदी का रथ् संवत 2000 के साल में सेठ श्री मगनलाल मूलचंद वारसो , सेठ श्री गोरधनदास मगनलाल हेरू सेठ की ओर से श्री जी को भेंट किया। इस रथ में 60 किलो चांदी का उपयोग हुआ ।
इस रथ यात्रा में सिध्दपुर के औदीच्य सहस्त्र ब्राहमण जाति के युवको छोटे छोटे बालक स्नान कर पिताम्बर पहन कर खूब पवित्रता से भगवान को गांव की परिक्रमा कराते हैं। गांव के बडे बुढे श्रेष्ठजन ,उधेागपति डाक्टर,वकील,और भजन मंडली,महिला मंडल आदि सब जुड जाते हैं । यह रथ् यात्रा श्रीजी के मन्दिर से निकल कर सरस्वती नदी के किनारे माधु पावडी पहुंचती है। वहां विद्वान ब्राहमणों व्दारा वेदमंत्रो से श्रीजी की पादुका की विधी पूर्वक पूजन तथा आरती होती है।उसके बाद रथयात्रा स्वंय के मन्दिर में आती है। जहां आखिर में भगवान की आरती और श्रीजी की पोखवानी विधि होती है। इस रथ यात्रा का स्वागत हर मोहल्ले के युवको तथा श्रध्दालुओं व्दारा किया जाता है। हर जगह ठण्डा पानी ,शरबत, छाछ आदि की सेवा कर भव्य स्वागत किया जाता है। समग्र रथ यात्रा पवित्रता पूर्वक सम्पूर्ण होती है। सिध्दपुर तथा आस पास के लोग श्रध्दा पूर्वक भगवान के दर्शनों का लाभ लेते हैं।
इस रथ यात्रा में श्री निलकंठेश्वर मन्दिर की 2500 वर्ष पुरानी गादी के शंकराचार्य जी भी जुडे हुए हैं। इस तरह भव्य तरीके से रथ् यात्रा का आयोजन होता है।
धुलेटी/ होली के दूसरे दिन फागुन वदि प्रतिपदा को इसी प्रकार होली के दूसरे दिन जो धुलेटी के नाम से जाना जाता है श्री जी की शोभा यात्रा चांदी की पालकी में निकलती है। यह शोभायात्रा पटेल लोगों की माढ में आकर सिध्दनाथ महादेव मन्दिर जाती है।
इस रथ यात्रा में सिध्दपुर के औदीच्य सहस्त्र ब्राहमण जाति के युवको छोटे छोटे बालक स्नान कर पिताम्बर पहन कर खूब पवित्रता से भगवान को गांव की परिक्रमा कराते हैं। गांव के बडे बुढे श्रेष्ठजन ,उधेागपति डाक्टर,वकील,और भजन मंडली,महिला मंडल आदि सब जुड जाते हैं । यह रथ् यात्रा श्रीजी के मन्दिर से निकल कर सरस्वती नदी के किनारे माधु पावडी पहुंचती है। वहां विद्वान ब्राहमणों व्दारा वेदमंत्रो से श्रीजी की पादुका की विधी पूर्वक पूजन तथा आरती होती है।उसके बाद रथयात्रा स्वंय के मन्दिर में आती है। जहां आखिर में भगवान की आरती और श्रीजी की पोखवानी विधि होती है। इस रथ यात्रा का स्वागत हर मोहल्ले के युवको तथा श्रध्दालुओं व्दारा किया जाता है। हर जगह ठण्डा पानी ,शरबत, छाछ आदि की सेवा कर भव्य स्वागत किया जाता है। समग्र रथ यात्रा पवित्रता पूर्वक सम्पूर्ण होती है। सिध्दपुर तथा आस पास के लोग श्रध्दा पूर्वक भगवान के दर्शनों का लाभ लेते हैं।
इस रथ यात्रा में श्री निलकंठेश्वर मन्दिर की 2500 वर्ष पुरानी गादी के शंकराचार्य जी भी जुडे हुए हैं। इस तरह भव्य तरीके से रथ् यात्रा का आयोजन होता है।
धुलेटी/ होली के दूसरे दिन फागुन वदि प्रतिपदा को इसी प्रकार होली के दूसरे दिन जो धुलेटी के नाम से जाना जाता है श्री जी की शोभा यात्रा चांदी की पालकी में निकलती है। यह शोभायात्रा पटेल लोगों की माढ में आकर सिध्दनाथ महादेव मन्दिर जाती है।
इसके बाद भगवान का जन्म दिन माह सुदी 13 को विश्वकर्मा जयन्ती के दिन आता है । उस दिन भी कमेटी व्दारा श्रीजी का षोडशेापचार पूजन,अभिषेक ,राजभोग,101 दीपक की आरती ,मंत्र जागरण्,स्वाध्याय मंडल के
कार्यक्रम,दत्त मंडल के भजन और विव्दान पंडितों का सत्संग का कार्यक्रम रखकर पूरे दिन भर भक्तजनों को महाप्रसाद का वितरण सुबह से शाम तक चलता रहता है। पूरे शहर तथा आसपास के भक्तजन खूब उत्साह से उपरोक्त कार्यक्रम और भगवान के दर्शनों का लाभ लेते हैं।
इस प्रकार श्रीगोविन्दराय जी.माधवरायजी भगवान के प्रति सिध्दपुर के हर संप्रदाय के लोगों की अपार श्रध्दा है। जिनका सिध्दपुर वतन है किन्तु व्यवसाय / रोजगार के लिए बाहर बसे यहां के प्रत्येक नागरिक की भगवान के प्रति अपार श्रध्दा है।
गामधणी का हूलामणा नाम से जाने जाने वाले सिध्दपुर के इष्टदेवता कुदरती आफतों से ग्राम के लोगों की तथा गांव की रक्षा करते हैं। और गांव के लोगों की श्रध्दा के प्रमाण से श्री गोविंदरायजी माधवरायजी की क्रपा हर भक्त के उपर बनी रहे। ऐसा हर भक्त का अनुभव है। श्रीजी की श्रध्दा के प्रमाण से हरएक भक्तों का कार्य पूर्ण होता है।
सिध्दपुर के बाहर के लोगों के भी श्री गोंविन्द माधव भगवान कुल देवता हैं। गुजरात और भारत भर के भक्त जन आपके दर्शन हेतु आते हैं। यहां बहुत से परिवारों के बच्चों की मान भी उतरती है।
गामधणी का हूलामणा नाम से जाने जाने वाले सिध्दपुर के इष्टदेवता कुदरती आफतों से ग्राम के लोगों की तथा गांव की रक्षा करते हैं। और गांव के लोगों की श्रध्दा के प्रमाण से श्री गोविंदरायजी माधवरायजी की क्रपा हर भक्त के उपर बनी रहे। ऐसा हर भक्त का अनुभव है। श्रीजी की श्रध्दा के प्रमाण से हरएक भक्तों का कार्य पूर्ण होता है।
सिध्दपुर के बाहर के लोगों के भी श्री गोंविन्द माधव भगवान कुल देवता हैं। गुजरात और भारत भर के भक्त जन आपके दर्शन हेतु आते हैं। यहां बहुत से परिवारों के बच्चों की मान भी उतरती है।
जीर्णोध्दार- गत वर्ष श्री गोंविन्द माधव भगवान की दोनों अति प्राचीन मूर्तियों का इतने सालों से होते रहे अभिषेक के कारण मूर्ति का क्षरण (घिसती) जा रही थी । उसका जीर्णोध्दार वैदिक पध्दति से आयुर्वेदिक लेप व्दारा जिसमें केमिकल की एक भी वस्तु का उपयोग लिए बिना सुन्दर स्वरूप दिया। उसके बाद पूरे मंदिर का जीर्णोध्दार और रंगरोगन कराया गया। इस पवित्र काम में श्रीजी के भक्तों, शहर के नागरिकों, उधोगपतियों, तथा श्रध्दालु भक्तों का संपूर्ण सहयोग मिलने से यह काम रूपये 18 से 20 लाख का खर्च करके मंदिर का जीर्णोध्दार ई;सं; 2010 में करवाया गया ।
मंदिर की पवित्रता के लिए तीन दिन तक श्री महाविष्णु यज्ञ का तथा भगवान के उपर सहस्त्र कलश का जलाभिषेक का कार्यक्रम भी श्रीजी के जन्म दिवस पर करवाया । ऐसे श्रीक्रष्ण बलराम के स्वरूप समान श्री गोंविदरायजी श्री माधवरायजी भगवान का दर्शन लाभ लेकर जीवन धन्य करने के लिए हरेक गुजरात की धार्मिक जनता को श्रीजी मंदिर कमेटी की और से हार्दिक आमंत्रण है । 2/1/2012 सिध्दपुर
मंदिर की पवित्रता के लिए तीन दिन तक श्री महाविष्णु यज्ञ का तथा भगवान के उपर सहस्त्र कलश का जलाभिषेक का कार्यक्रम भी श्रीजी के जन्म दिवस पर करवाया । ऐसे श्रीक्रष्ण बलराम के स्वरूप समान श्री गोंविदरायजी श्री माधवरायजी भगवान का दर्शन लाभ लेकर जीवन धन्य करने के लिए हरेक गुजरात की धार्मिक जनता को श्रीजी मंदिर कमेटी की और से हार्दिक आमंत्रण है । 2/1/2012 सिध्दपुर
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भालचंद भाई ऐस;ठाकुर
मंत्री
श्री गोविंद माधव मंदिन कमेटी सिध्दपुर
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उक्त यह आलेख गुजराती भाषा मे हमको प्राप्त हुआ था। हिन्दी मेँअनुवादित होकर प्रस्तुत हे । किसी प्रकार की त्रुटि शांशोधन योग्य होगी अवगत करावे। धन्यवाद । लगभग 37 फोटोग्राफ़्स मेरे द्वारा लिए गए हें , दर्शनार्थ प्रस्तुत हें क्लिक करे -फोटो गेलरी सिद्धपुर के दर्शनीय स्थान
-डॉ मधु सूदन व्यास उज्जैन
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