औदीच्य बन्धु के आदि संरक्षक एवं जीवन दाता पं . श्री लाल जी साहब पण्डया
औदीच्य बन्धु के आदि संरक्षक एवं जीवन दाता परम पूज्य प्रात स्मरणीय , तपोनिष्ठ पं . श्री लाल जी साहब पण्डया औदीच्य समाज के उन जाज्वल्य मान नक्षत्रों में से थे ,जिसके प्रकाश में तथा जिनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद के फलस्वरूप श्री सुशीलकुमार जी ठाकर भी तन मन धन से सतत कठोर परिश्रम करते हुए औदीच्य बन्धु को वर्तमान उंचाई तक ले जाने में सफल हुए ।
ऐसे अलौकिक सामाजिक क्रांति के द्रष्टा तेजस्वी महापुरूष का आविर्भाव सम्पूर्ण औदीच्य समाज के लिए वरदान है। आपका जन्म शांडिल्य गौत्रीय श्री पं; शालिग्राम जी कालूराम जी पंडया के यहां रतलाम में भाद्र शुक्ल एकादशी संवत 1938 तदनुसार 22 सितम्बर 1882 में हुआ । सन 1902 में प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया । सन 1905 में धार रियासत में शिक्षा अधिकारी के रूप में सेवा प्रारंभ करते हुए निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हुए कमिश्नर कस्टम एवं एक्साईज , डायरेक्टर आफ सिविल सप्लाईज तथा स्टेट कौंसिल के मूब्मर ल ैसे अनेकों महत्वपूर्ण उच्च प्रशासकीय पदों पर , पूर्ण ईमानदारी ,निष्ठा एवं योग्यता से कार्य करते हुए मार्च 1947 में सेवा निवृत हुए ।
सामाजिक एवं प्रशासकीय क्षेत्र में सफलता के साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में भी साहब ने उच्च कोटि की दिव्यता प्राप्त की । वे महान गुरूभक्त ,परम भागवत ,ब्रहमनिष्ठ महापुरूष थे । युग धर्म के अनुसार उनके आदर्श एवं विचारों में अध्यात्म तथा विज्ञान का अपूर्व समन्वय था । अपनी मूल ब्राहमणोचित संस्क्रति की रक्षा करते हुए वर्तमान युग के अनुरूप शिक्षा एवं आर्थिक क्षेत्र में प्रगति के पक्षपाती थे 1 अपने सेवाकाल में आपने अनेक स्कूल खुलवाये तथा अनेकों निर्धन निराश्रित छात्रों को अपने व्यय से उच्च शिक्षा उपलब्ध करवाई ।
पू;साहब का सम्पूर्ण जीवन ऋषि परम्परा के अनुरूप आध्यात्मिक रहा । यज्ञ यज्ञोपवित एवं गायत्री को आप औदीच्य संस्क्रति का प्रतीक मानते थे । प्रारंभ से ही अनेकों उच्च कोटि के सिध्द महापुरूषों के संपर्क सत्संग,गायत्री उपासना एवं सदगुरूदेव अवधूत श्री नित्यानंद जी महाराज की अनन्य क्रपा के फलस्वरूप आपने जीवन में अलौकिक दिव्यता प्राप्त की । धार में नित्यांनद आश्रम की स्थापना के साथ ही अपना सम्पूर्ण जीवन गुरूदेव की सेवा में समपर्ति कर दिया ।
अखिल भारतीय औदीच्य महासभा के भुसावल अधिवेशन के आप अध्यक्ष रहे तथा बडनगर अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष थे । पू; साहब की प्रेरणा से ही औदीच्य महासभा के अधिवेशनों में गायत्री यज्ञ एवं सामूहिक यज्ञोपवित जैसे कार्यक्रम सम्पन्न होते थे । ,
गौर वर्ण,सुगठित शरीर,मस्तक पर केसर युक्त चन्दन का तिलक,गायत्री पुरूश्चरणों से प्रदीप्त ओजस्वी मुखाक्रति जिसमें ब्रहमचिन्तन एवं श्री गंरूक्रपा की प्रखर ज्योति सदैव झलकती थी । अपने जीवनकाल में उन्होने जितने यज्ञ, धार्मिक अनुष्ठान,गायत्री पुरूश्चरण किये उनकी गणना करना कठिन है।
19 जनवरी 1970 को ओम नम शिवाय का जान करते हुए आप बह्रमलीन हुए । धार आश्रम में आपकी समाधि बनी हुई है। गुरूदेव के अनन्यतम वरिष्ठ एवं प्रमुख अनुयायी होने के कारण प्रतिवर्ष गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश मालवा के हजारों भक्त श्रध्दा सुमन अर्पित करने धार आते रहते हैं ।
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