प्रायश्चित के रूप में "रुद्र यज्ञ" और "रुद्रमहालय" निर्माण
तब एक राजा के रूप में सिहाँसनारुड मूलराज ने प्रायश्चित के रूप में " रुद्र यज्ञ " करने और रुद्रमहल निर्माण कर " रुद्र (शिव)" को एक विशाल मंदिर बनाकर स्थापित करने का संकल्प लिया |. लेकिन फिर भी श्रीमाली ब्राह्मण पुजारियों ( याजक) नहीं माने|.तब यह मूलराज के लिए महत्वपूर्ण था यदि एक राजा मोत के बाद राजा के रूप में कोई भी सिहासन पर नहीं हो और अगर सिंहासन एक लंबे समय तक खाली रहे तो वहाँ एक अराजकता हो जाएगी | उसी समय कई चावड़ा वंशजों का सिंहासन के लिए दावे आने शुरू हो गए थे | . राज्य की सीमा पर दुश्मनो ने गुजरात पर आक्रमण की तैयारी शुरू कर दी थी | अगर राज्य को बनाए रखना था तो एक तत्कालिक कार्रवाई की जरूरत थी| लेकिन श्रीमाली याजक परिस्थितियों समझने के बाद भी, व्यावहारिक रूप से स्वीकार और मूलराज के हत्या के कारणों और साख से एकमत नहीं थे| मूलराज इस स्थिति पर काबू पाने के लिए एक और रास्ता खोजने लगा था |
औदीच्य (उत्तर भारत के) ब्राह्मणो को आमंत्रण
यह फेसला किया गया की , बड़ी संख्या में विद्वान और बुद्धिमान ब्राह्मण परिवारों को लुभाने,के लिए उन्हें भूमि और राज्य याजक के रूप में पदों की पेशकश की जाये | तुरंत इस काम को करने के लिए माधव जी के नेतृत्व में कई सामन्तो को गंगा और यमुना नदियों के मैदानों में स्तिथ विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों और क्षेत्रों को भेजा गया | जहां शिक्षित और प्रमुख विद्वान ब्राह्मण जो इस स्थायी व्यवस्था के लिए गुजरात आने के लिए राजी हो सकते थे | एक नई साजिश होने से बचने के लिए, यह भी यह सुनिश्चित किया कि सब ब्राह्मणों को अलग-अलग स्थानों से ( एक ही जगह से नहीं) लाया जाये | मूलराज और उनके मंत्री माधव को एक शानदार विचार आया| पहिले चावड़ा राजाओं के साथ श्रीमाल से उनके साथ श्रीमाली ब्राह्मण आये थे | और क्योकि मूलराज का आगमन (कनोज ) कान्यकुब्ज गंगा और यमुना नदियों की उपजाऊ भूमि से हुई थी, इसलिए यदि उस क्षेत्र से याजकों के लिए आने के लिए राजी किया जा सकता है, और एक राजा के रूप में मूलराज को सिंहासनारूढ़ करना , रुद्र यज्ञ करना और राज्य में याजकों को स्थापित कर देना इससे , दो पक्षियों को एक पत्थर के साथ मारना जेसा काम हो सकता है|. इससे मूलराज एक वैध राजा होगा और दूसरी श्रीमाली ब्राह्मणों का प्रभाव में कटौती भी होगी |
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