वेदमूर्ति पंडित नरहरि श्रीक्रष्‍ण शुक्‍ल - औदीच्य समाज की विभूतियाँ।

वेदमूर्ति पंडित नरहरि श्रीक्रष्‍ण शुक्‍ल
   वेदाचार्य प्रकाण्‍ड विव्‍दान '' पण्डित नरहरि श्री कृष्‍ण शुक्‍ल जी का जन्‍म मार्गशीर्ष शुक्‍ल प्रतिपदा संवत 1956 को हुआ। श्री शुक्‍लजी ने 'परोपकाराय संता विभूतय' सिध्‍दान्‍त को अपनाकर आजीवन अपने ग्रह-स्‍थान पर याज्ञवल्‍क्‍य वेदविध्‍या प्रतिष्‍ठान कर ब्राहमणों के बालकों को सम्‍पुर्ण यजुर्वेद, कर्मकाण्‍ड, श्रोतस्‍मार्त, कर्म का अध्‍ययन शिष्‍यपरंपरागत पध्‍दति से करवाया । उनके आशीर्वाद प्राप्‍त पण्डित महेन्‍द्र शास्‍त्री, रमेश पण्‍डया, सोहन भटट, सुरेश पण्‍डया, पं लक्ष्‍मीकान्‍त जी शास्‍त्री, अरूण मेहता, प्रदीप मेहता तथा डा; केदारनाथ शुक्‍ल आदि शिष्यों द्वारा आज भी श्री गुरू सान्‍दीपनी आश्रम श्रीकृष्‍ण अध्‍ययन स्थली अवंतिका की गरिमा को भारत में शुक्‍ल जी के आशीर्वाद से जीवित रखे हुऐ हैं । 
    श्री शुक्ल जी ने आजीवन अवंतिका[उज्जैन]  में रहकर इसी शाला के अंतर्गत सनातन धर्म प्रचारार्थ अनन्‍त श्री विभूषित करपात्री जी महाराज,  आपके गुरू श्री शंकराचार्य जी, कृष्‍णवोधाश्रम जी ,श्री शंकराचार्य निरंजनदेवजी एवं नगर के विव्‍दत परिषद के साथ श्री वैध्‍यरत्‍न रमणलाल जी, वेदशास्‍त्र सम्‍पन्‍न बसन्‍तीलाल जी शुक्‍ल, शंकरदत्‍त जी शास्‍त्री , एवं आयुर्वेदाचार्य वैध्य स्व . लक्ष्‍मीनारायण शुक्‍ल एवं अन्‍य नगर के विव्‍दानों के सहयोग से आजीवन धर्मसंघ संस्‍था का संचालन किया । 
    श्री शुक्‍लजी के जीवन की महान विशेषता यह रही कि उन्‍होने ब्राहमणों को प्रमुख माना । जीवन में ब्राहमणों से ही प्रतिग्रह ग्रहण किया।  जीवनोत्‍तर समय में उन्‍होने औदीच्य समाज उत्‍थान के लिऐ समर्पित होकर समाज को जाग्रत किया और प्रमुख अग्रणी होकर धर्मशाला में श्री गणेश मन्दिर का निर्माण कराया । 
   श्री शुक्‍लजी के विषय में कहा जाता है कि उन्‍होने भूतभावन भगवान महाकालेश्‍वर पर महात्‍मागांधी की अस्थि चढाने पर धर्मशास्‍त्र के आधार पर स्‍वयं अकेले ने आगे आकर विरोध प्रगट किया। आख्रिर अस्थियां वापस गई व महाकालेश्‍वर लिंग पर नहीं चढने दी गई । 
   श्री शुक्‍लजी का विवाह श्रीमान मुन्‍नालाल जी ठक्‍कर उज्‍जैन की सुपुत्री व समाज के प्रतिष्ठित श्री ठाकर ललिताशंकर जी की बहन इन्‍द्रादेवी के साथ हुआ था ।
   श्री शुक्‍लजी का निर्वाण ज्‍येष्‍ठक्रष्‍ण पक्ष पंचमी तदनुसार दिनांक 20 मई 1984 को उज्‍जैन में हुआ। 
समाज की ऐसी प्रेरणादायी विभूति को शत शत नमन । 
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