अ.भा.औदीच्य महासभा का संविधान पंजीकृत हुआ।

   1 जून 2014 को औदीच्य ब्राह्मण समाज धर्मशाला देवास में अ.भा.औदीच्य महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक प्रारम्भ हुई । महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रघुनन्दन जी शर्मा व्दारा श्री गोविन्द माधव के चरणों में प्रणाम करते हुवे, महासभा के संविधान के पंजीकरण की जानकारी से उपस्थित सदस्यों को अवगत कराया। आपने बताया कि अ.भा.औदीच्य महासभा का गठन वर्ष 1905 में होकर, संविधान का पंजीकरण वर्ष 1953-54 में हुआ था। महासभा के संविधान में समयानुसार संशोधन कर संबंधित रजिस्टार कार्यालय में पंजीकरण आवश्यक होने से प्रथम बार पंजीकृत हुए संविधान संबंधी जानकारी मध्य प्रदेश में इन्दौर भोपाल के रजिस्टार कार्यालय से चाही तो पता लगा की इसका पंजीकरण मध्यप्रदेश में हुआ ही नही है। तब मूल संविधान की प्रति की तलाश की गई तो वह अंग्रेजी में टंकित होकर जीर्ण शीर्ण अवस्था उपलब्ध हुई। मूल संविधान में पंजीकरण देहली के रजिस्टार के कार्यालय का होने से वहां जाकर जानकारी प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ की यह कार्यालय को दो तीन जगह स्थानान्तरित हुआ है। बडी खोज बीन के बाद कार्यालय की जानकारी मिल सकी। 
     कार्यालय के बार बार स्थानान्तरण होने से 65 वर्ष पूर्व पंजीकृत हुए महासभा के संविधान की फाईल ढूंढना असंभव सा था, किन्तु रेकार्ड रूम से एक सप्ताह तक खोजबीन की गई तब बडी मुश्किल से महासभा से संबंधित पत्र प्राप्त हुआ तो ऐसा लगा मानों कुबेर का खजाना मिल गया हो। तब इसकी फाईल रजिस्टार महोदय को प्रस्तुत करने पर उन्होने कहा की आपके केन्द्रीय कार्यालय का पता तो इन्दौर का अंकित है, अतः इसे मध्यप्रदेश में ही नये सिरे से पंजीकृत करवाया जावे। इस संबंध में रजिस्टार महोदय को बताया गया कि संविधान का प्रथम पंजीकरण तो आपके कार्यालय में ही हुआ है। इतनी पुरानी महासभा का नये सिरे से पंजीकरण कराने से कई वैधानिक समस्या की संभावना पैदा हो सकती है । तब रजिस्टार के निर्देश अनुसार महासभा के मुख्य कार्यालय का पता दिल्ली एवं उप कार्यालय का पता इन्दौर का दर्शाया जावे। इस कारण सबसे पहले मूल संविधान में अंकित पते पर जाकर जानकारी लेने पर पाया कि दिये गये पते: अब कोई निवास नहीं कर रहा है। अतः दिल्ली में मुख्य कार्यालय का पता दिया गया । 
   रजिस्टार के निर्देशानुसार सारी कार्यवाही पूर्ण कर पंजीकरण हेतु प्रपत्र प्रस्तुत कर दिये गये । एक वर्ष के अन्तराल में उनके व्दारा हर बार एक दो बिन्दु की जानकारी लाने का कहा गया। कागजों की खाना पूर्ति करने में श्री भगवानसिंह शर्मा ,संगठन मंत्री और श्री रवि ठक्कर ,महामंत्री म.प्र.इकाई ने अनेक बार दिल्ली कार्यालय के चक्कर लगाये एवं रात दिन बैठकर सारी जानकारी जुटाई। इस प्रकार लगभग 5000 पृष्ठों की जानकारी प्रस्तुत की गई। इतनी अधिक मेहनत का जानकारी देने के उपरान्त भी संविधान स्वीकृति में रोडा अटकाने पर कठोर रूप अपनाना पडा। उसका इतना असर हुआ कि रजिस्टार ने प्रभावित होकर उसे स्वीकृती प्रदान की जो आज आप सबके सामने प्रस्तुत है ! 
  सभी उपस्थित सदस्यों ने हर्ष ध्वनि के साथ माननीय श्री रघुनन्दन जी के इस असंभव कार्य को अमली जामा पहनाने के प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा कर धन्यवाद ज्ञापित किया ।

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