इन्दौर नगर के प्रथम आनरेरी मजिस्ट्रेट |
श्रध्देय प॰ मुकुन्दराम जी त्रिवेदी सा; का जन्म सऩ 1862 में अहिल्या नगरी इन्दौर में हुआ। आपके पूज्य पिता श्री पं; भवानीशंकरजी त्रिवेदी सा; जहां इन्दौर के सेठ साहूकारों के आराध्य थे, वहीं इन्दौर के राजघराने में आदर सम्मान से पूजे जाते थें। आपको इन्दौर के औदीच्य समाज की ओर से "जाति में सरदार" की पदवी से विभूषित किया गया था। तब जाति के समस्त सामूहिक कार्यों के लिए सरदार की परवानगी आवश्यक हुआ करती थी। [उज्जैन नगर औदीच्य समाज में भी मान्य 4 सरदार परिवारों में यह परिवार था।]
सन 1916 में स्व; श्री पं; जी राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के निकट संपर्क में आये। वे मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के संस्थापक सदस्य थे। हिन्दी साहित्य का अष्टम अखिल भारतीय सम्मेलन इन्दौर में महात्मा गांधी के सभापतित्व में संयोजित किया गया था। पंडित जी की विशेष प्रतिभा और सुचारू व्यवस्था के तहत यह सम्मेलन बडी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। तभी से पंडित जी महात्मा गांधी के क़ृपा पात्र बने। इस आयोजन के दौरान गांधी जी पंडित जी के निवास स्थान पर पधारे और इन्दौर के गणमान्य लोगों को बापू से बातचीत का अवसर मिला।
सन 1921 में महात्मा गांधी के विदेशी कपडों के बहिष्कार का आंदोलन इन्दौर में पंडित जी ने संचालित किया। वे स्वयं भी तब तक मानचेस्टर की मीलों के उत्क़ृष्ठ वस्त्र धारण किया करते थे, उनका परित्याग किया और जीवन पर्यन्त स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल किया। उन्होने अपने पुत्रों और कुटुम्ब को भी स्वदेशी वस्तुओं उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित किया। महाराज होल्कर पंडित जी की सुझ-बुझ भरी विचार शैली, और उनकी प्रतिभा से परिचित तथा प्रभावित थे। उन्होने पहली बार इन्दौर नगर में आनरेरी मजिस्ट्रेट का पद कायम किया और पंडित जी को पदस्थ किया। पंडित जी सन 1915 से 1933 तक यशस्वी न्यायदाता का दायित्व निभाते हुए बडे लोकप्रिय साबित हुए।
संगीत और ज्योतिष में खासा दखल था। सन 1936 में पंडित जी के प्रयत्न स्वरूप ही इन्दौर में अखिल भारती ज्योतिष सम्मेलन का आयोजन हुआ। महामना पं; मदनमोहन मालवीय ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। पं; मालवीय जी भी पं; मुकुन्दराम जी से प्रभावित होकर उनके निवास स्थान पर पधारे और उनके कुल को गौरवान्वित किया। पण्डित जी लोक कल्याण करते हुये जाति के उत्थान का भी सतत प्रयत्न करते रहे। इन्दौर में पढाई के निमित्त ज्ञाति के विधार्थियों के लिए निवास की असुविधा पंडित जी के लिए एक चुभन बन गई थी। इसके निवारणार्थ एक औदीच्य छात्रावास का औचित्य पंण्डित जी खूब समझते थे। परिणाम स्वरूप ' मुकुन्दराम त्रिवेदी औदीच्य छात्रावास' अपने जनक श्री पंण्डित जी की याद प्रत्यक्ष रूप से संजोए हुए है।
मालवा में अखिल भारतीय महासभा का दूसरा सफल अधिवेशन बडनगर में हुआ और पंडित मुकुन्दराम जी सा; त्रिवेदी को वहां पर महासभा का अध्यक्ष मनोनित किया गया। श्री त्रिवेदी जी के नेतृत्व में
महासभा के कार्य का पर्याप्त विस्तार हुआ ।
पंडित जी 17 जून 1972 को 110 वर्ष की आयु में ब्रहमलीन हो गये। दिवंगत होने के कुछ दिनों तक पूर्व वे प्रतिदिन 4 बजे उठते थे। पूजापाठ पश्चात अपने कक्ष व वस्त्रों की सफाई स्वयं अपने हाथों से करते थे। पंडित का उसूल था ''आपदाओं में मूस्कराते हूए संघर्ष करो '' ।
इन्दौर के प्रतिष्ठित अखबार ने एक बार पंडित जी से इंटरव्यू करते हुए उनके दीर्घायु होने का रहस्य पूछा, तो पंडित जी ने अपनी चिर परिचित शैली में कहा--
"हुजूमें गम मे भी मैं अपनी फितरतें भूला नहीं सकता ।
मैं क्या करूं मेरी आदत है मुस्कराने की । ''
पंडित जी एक सच्चे औदीच्य रत्न थे ।
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