रायबहादुर पण्डित चम्‍पालाल तिवारी।


औदीच्य समाज की विभूतियाँ- रायबहादुर पण्डित चम्‍पालाल तिवारी। 
भारतीय राजनीति व शासन व्‍यवस्‍था में चाणक्‍य व्‍दारा प्रतिपादित कूटनीति का आभास प्रत्‍येक युग में परि‍लक्षित हुआ है। साम, दाम, दण्‍ड, भेद के रहस्‍य को जिसने जान लिया उसे अपने जीवन काल में कभी मात नहीं खानी पडी। 
     यहां जिस व्‍यक्तित्‍व का विवरण संक्षेप में दिया जा रहा है, उसमें उक्‍त गुण भरपुर थे।  काकोरी काण्‍ड के प्रमुख स्‍वतन्‍त्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल व उनके अन्‍य सहयोगी लखनऊ जेल में थे, उस समय राय बहादुर पं; चम्‍पालाल तिवारी तब उस लखनऊ जेल के वरिष्‍ठतम अधिकारी थे। अंग्रेजी शासन काल था, और उन्‍ही के बनाये कानून के तहत राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी की सजा सुनाई गई थी। अपने गुणो के कारण शासन को नाराज किए विना कुशलता पूर्वक, निर्देशों के विरुद्ध जाकर स्वतन्त्रता सेनानियों को अधिकतम सुख सुविधाये दीं। इससे वे उनके मुरीद बन गए थे। 
     सहयोगियों के सहयोग से बिस्मिल ने फांसी के पूर्व जेल से फरार होने की योजना बनाई। एक रात्रि बिस्मिल ने अपने तरु के रोशनदान की छडे काट डाली और जब वे उसमें से कूदने के लिए तैयार भर थे, उन्‍होने अपने संस्‍मरणों में लिखा है ''और मुझे उस समय साधू स्‍वभाव जेलर का ध्‍यान आया। बिस्मिल तू तो भाग जायेगा, उस जेलर के साथ क्‍या गुजरेगी"। ख्‍याल आते ही मैंने भागने का विचार छोड दिया, और नीचे कूद पडा । विस्मिल जी ने भी इस बारे मेँ ओर अधिक लिखित प्रमाण नहीं छोड़ा, क्योकि वे जानते थे, की वह तिवारी जी के विरुद्ध हो जायेगा। '' यह वाकिया सोचने को विवश करता है कि क्‍या खासियत थी श्री तिवारी के चरित्र में कि बिस्मिल ने फांसी के फन्‍दे पर झूलना मंजूर किया पर जेलर की नौकरी पर आंच न आने दी। [कहा जाता हे, की जेल की विस्मिल जी को छड़ काटने की सामग्री उनके इशारे पर ही उपलब्ध कराई गई थी। इस घटना के बाद विस्मिल जी को गोरखपुर जेल मेँ स्थानातरित किया गया था, ओर उन्हे वहीं फांसी हुई थी।] 
  लखनऊ जेल में कांकोरी के अभियुक्‍तों को बडी भारी आजादी थी। रायसाहब पं; चम्‍पालाल जेलर की कृपा से हम यह कभी नहीं समझ सके कि जेल में हैं, या किसी रिश्‍तेदार के यहां मेहमानी प्राप्‍त कर रहे हैं [विस्मिल]। हम लोग जेल वालों से बात बात में ऐंठ जाया करते थे। पं; चम्‍पालाल जी हम लोगों से अपनी संतान से भी अधिक प्रेम रखते थे। हम में से किसी को जरा सा भी कष्‍ट होता था तो उनको बडा दुख होता था। हमारे तनिक से भी कष्‍ट को वो नहीं देख सकते थे। 
     विस्मिल जी सहित सभी क्रांतिकारियों के लिखे गीत, कवितायें, लेख आदि, उनके कारण ही नियम विरुद्ध बाहर पहुँच कर प्रकाशित हो सकीं थीं, जिससे आजादी की लड़ाई के लिए जनता को नई दिशा दी। 
           श्री तिवारी ने  न सिर्फ बिस्मिल को अन्‍य स्‍वतन्‍त्रता सेनानियों को भी जेल में घर जैसा वातावरण सुलभ कराया। श्री तिवारी की धर्मपत्‍नी स्‍वयं अपने हाथों से ऐसे सेनानियों को मन पसन्‍द भोजन बना कर भिजवाती रही। 
    तत्‍कालीन कांग्रेसी नेता श्री चन्‍द्रभानु गुप्‍त इन्‍हीं कारणों से श्री तिवारी के अभिन्‍न रहे। आलम यह कि अंग्रेज सरकार भी उनकी प्रशासनिक क्षमता और कार्य कुशलता की इतनी कायल रही कि उन्‍हें रायबहादूर के खिताब से नवाजा। 
     इस विलक्षण व्‍यक्तित्‍व ने अंग्रेजों की दुर्नीति के विरुद्ध चतुराई ओर कूटनीति से जितने साल सरकारी सेवा की उससे अधिक समय तक पेंशन भी पाई। बुढापे में भी उनकी दबंग आवाज और भरे पूरे परिवार की दैनिक व्‍यवस्‍था ऐसे संभाली कि आज भी संयुक्‍त परिवार को मिसाल के रूप में याद किया जाता है।
     स्‍व; श्री शंभूराम जी तिवारी के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री चम्‍पालाल तिवारी सेवा निव्रति के बाद जयपुर आगये थे।  जहां उनके ज्‍येष्‍ठ पुत्र स्‍व; श्री प्‍यारेलाल तिवारी वेदपाठी ने अपनी दूरदर्शिता और भविष्‍य की संभावनाओं को द्रष्टिगत रखते हुए आधार भूमि तैयार कर रखी थी। इनके पांच पुत्र सर्व श्री प्‍यारेलाल, देवीशंकर, रमाशंकर, कृपाशंकर, रूपशंकर व एक पुत्री सिध्‍देश्‍वरी देवी हुई। श्री देवीशंकर तिवारी ने राजस्‍थान में जो ख्‍याति अर्जित की वह बेमिसाल है। घर आये अतिथियों का मान सम्‍मान करना उनकी हाबी रही। आगत के सत्‍कार में कमी रहना उन्‍हे बर्दाश्‍त नहीं था । 
    औदीच्‍य समाज में जिन विभूतियों ने यश और ख्‍याति अर्जित कर समाज के गौरव को बढाया उनमें श्री तिवारी का स्‍थान विशिष्‍ट रहा। औदीच्‍य जाति का यह पुरोधा तो उल्‍लेखनीय है ही, कुदरत की मेहरबानी देखिए कि इसी कुल में वेद मर्मज्ञ, आदर्शवादी राजनेता, कुशल प्रशासक, तकनीकी विशेषज्ञ पैदा हुए जिन्‍होने इनकी वंश बेल की मात्र वृध्दि ही नहीं की अपितु उसमें चार चांद लगाए।
        इस प्रकार के सहृदय ओर साहसी कूटनीतिज्ञ व्यक्तित्व औदीच्य ब्राह्मण समाज के व्यक्ति मेँ ही हो सकती हे। हमें उन पर गर्व हे। 
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