श्री कृपाशंकर जी महाराज--औदीच्‍य समाज की विभूतियां।

  श्री कृपाशंकर जी महाराज
   मथुरा के ज्‍योतिषी बाबा का वंश औदीच्‍य ब्राहमण समाज का एक प्रसिध्‍द घराना है। इस संस्‍थान के यशस्‍वी पुरूष ज्‍योतिषी बाबा श्री पं; कृपाशंकर जी महाराज ( सवत 1800. 1861) पेशवा एवं होल्‍कर सिंधिया के सम्‍मानित ज्‍योतिषी थे। इन नृपतिगणों व्‍दारा ही उनको '' ज्‍योतिष बाबा '6 की पदवी एवं ग्राम दान के साथ समुचित वैभव भी प्राप्‍त हुआ था ।

   यह परिवार ब्राहमण समाज का विशेषत औदीच्‍य ब्राहमण समाज का तो अनन्‍य सेवक ही रहा है । जब बाबा श्री कृपाशंकर जी महाराज ने सवाई माधोपुर में अपने इष्‍टदेव भगवान श्री भवानी-शंकरनाथ महादेव का विशाल मंदिर बनवाया और अपनी माता की '' रोप्‍यतुला'' की तब आपने 5000 औदीच्‍यों को निमंत्रित किया था और यज्ञ की समाप्ति पर समस्‍त औदीच्‍य ब्राहमणों को भोजन वस्‍त्रादि के अतिरिक्‍त एक एक स्‍वर्णमुद्रा दक्षिणा देकर संतुष्‍ट किया था। इसी प्रकार नित्‍य प्रति जितने भी औदीच्‍य ब्राहमण वहां आते उनके तथा दंडी सन्‍यासियों के लिए अपने यहां भोजन कराने का संकल्‍प किया था । इस निर्णयानुसार प्रतिदिन मध्‍यान्‍ह में 150 ' 200 ब्रामिण आनके यहां भोजन करते थे। यह अन्‍नदान अनेक वर्षो तक चलता रहा ।

   इसी प्रकार आपके व्‍दारा अनेक राजा महाराजाओं के प्रश्‍नों पर ज्‍योतिष विध्‍या के व्‍दारा दिये गये अनेक चमत्‍कार पूर्ण उत्‍तरों की कई प्रसिध्‍द घटनायें हैं जो आपकी अपूर्व विघ्‍या व्रध्दि की परिचायक कही जा सकती है। आपकी इस देवी शक्ति पर प्राय सभी मुग्‍ध रहते हैं । आपने स्‍वामीघाट पर विशाल हवेली बनवाई जो आज भी उनकी कीर्ति के स्‍मारक के रूप में ज्‍योतिषी बाबा की हवेली के नाम से प्रसिध्‍द है।

   मथुरा में भी आपने समस्‍त औदीच्‍य ब्राहमणों के भोजन के लिये क्षेत्र स्‍थापित किया और यहां भी 100 , 150 औदीच्‍य ब्राहमण निरंतर भोजन करते थें । यह नियम कई वर्षों तक प्रचलित रहा । यहां तक की इस परम्‍परा को अखण्‍ड रखने के लिए संवत 1956 के अकाल के समय आपके पुत्र ज्‍योतिषी बाबा श्री गोविंदलाल जीर महाराज को '' हथिया'' नाम का एक बडा ग्राम तक बेच देना पडा किंतु पिता के संकल्‍प की ये यथाशक्ति पूर्ण रूप से पूर्ति करते रहे । इस प्रकार त्‍याग, तपोमय जीवन व्‍यती‍त करते हुए संवत 1961 में आपका मथुरा में कैलाशवास हो गया ।

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