पं; गोविन्‍दवल्‍लभ जी शास्‍त्री ---औदीच्‍य समाज की विभूतियां ।

1917 के जलियाँवाला बाग के मंच से घटना के साक्षी श्री पं; गोविन्‍दवल्‍लभ जी शास्‍त्री, औदीच्‍य समाज के वे मूर्धन्‍य विव्‍दान रहे हैं, जिन्‍होने औदीच्‍य संस्‍क्रति को गौरवान्वित किया। वे समाज के उत्‍थान एवं अभ्‍युदय में आजीवन लगे रहे। पूज्‍य श्री लाल जी साहब के अनन्‍य सहयोगी एवं उनके मार्गदर्शन में श्री शास्‍त्रीजी ने समाज की सेवा की है वह चिरस्‍मरणीय है।

शास्‍त्रीजी संस्‍क्रत एवं ज्‍योतिष के प्रकाण्‍ड विव्‍दानि थे।  श्रीमद भागवत पर आपका पूर्ण अधिकार था। वे ऋषि परम्‍परा के प्रतीक यज्ञपुरूष थे । आपके प्रखर व्‍यक्तित्‍व एवं ओजस्‍वी वाणी से सभी मंत्रमुग्‍ध हो जाते थे । वे सदगुरूदेव श्री नित्‍यानंदजी बापजी एवं परम वन्‍दनीय श्री जयनारायण बापजी के विशेष क्रपा पात्र भक्‍त थे। सन 1939 में अपने हरिव्‍दार में प्रणव मंन्दिर की प्रतिष्‍ठा कार्य सम्‍पन्‍न कराया जहां श्री गुरूपाद पदम की , 1 अरब 40 करोड लिखे गये ''ओम'' के उपर स्‍थापना की गई ।1952 में धार में श्री नित्‍यानन्‍देश्‍वर महादेव की प्राण प्रतिष्‍ठा का कार्य सम्‍पन्‍न किया। श्री गुरूदेव के 'श्री नित्‍यानंदे आश्रम पर अनेको महायज्ञ संपन्‍न कराये ।

समाज सेवा के क्षेत्र में भी आप अग्रणी रहे। मथुरा में हुए उत्‍तर भारतीय औदीच्‍य महासभा के अधिवेशन में सक्रिय भाग लिया । 1932 में उज्‍जैन अधिवेशन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई । इसी प्रकार अ;भा; औदीच्‍य महासभा के जयपुर अधिवेशन, 1951 में बडनगर अधिवेशन, 1954 में देवास अधिवेशन और 1957 में इन्‍दौरे अधिवेशन को सफल बनाने में आपका योगदान प्रमुख रहा । 

1917 जलियांवाला बाग की सभा में भी आप मंच पर थे। राष्‍टपति डा; राजेन्‍दप्रसाद, व्‍ही, व्‍ही गिरी, श्री गोविन्‍दवल्‍लभ पंत एवं श्रीमती सरोजिनी नायडू भी आपकी विव्‍दत्‍ता से प्रभावित थे। 31 जनवरी 1961 में आपका निधन हुआ ।
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