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श्री नरेश मेहता आत्मज पं; बिहारीलाल जी मेहता का जन्म 15 फरवरी 1922 को शाजापुर (मालवा) में हुआ था । आपने एम;ए;हिन्दी काशी विश्वविध्यालय से किया । 1942 के स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय सहयोग दिया । छात्र आन्दोलन तथा कांग्रेस कम्यूनिस्ट पार्टी से लगभग 15 वर्षो तक संबंध्द रहे। दिल्ली में ट्रेड यूनियन के एक साप्ताहिक के संपादन के अलावा ''क्रति'' जैसे प्रमुख मासिक के संपादक रहे। आकाशवाणी के लखनऊ, इलाहाबाद, और नागपुर केन्द्रों पर कार्यक्रम अधिकारी रहे। कुछ दिनों तक बौध्द भिक्षु से लेकर मिलेट्री में सेकण्ड लेप्टिनेंट का अनुभव भी अर्जित किया। इतने विविध अनुभवों के बाद 1959 में साहित्यिक स्रजन और लेखन को अंतिम ध्येय मानकर प्रयाग में रहकर स्वतन्त्र लेखन में रत रहे।
आधुनिक भारतीय साहित्य के शीर्षस्थ कवियों, कथाकार एवं विचारक के रूप में न केवल प्रतिष्ठित ही नहीं बल्कि आज के समकालिन लेखन में स्रजनात्मक विपुलता, विशिष्ठ जीवन द्रष्टि, निष्णात भाषा और विशाल फलक को समेटने वाली क्लासिकीय शैली के कारण विशिष्ठ नाम ही नहीं बल्कि प्रतीक है। अब तक काव्य के पांच सग्रह इनमें उत्सव संकलन भी है जिसने वर्तमान हिन्दी कविता को वैदिकता प्रदान की है ।
साहित्य के क्षेत्र में 1973 में म;प्र; शासन का राजकीय सम्मान, 1983 में सारस्वत सम्मान, 1984 में शिखर सम्मान, 1985 में उत्तर प्रदेश संस्थान सम्मान,1990 में भारत भारती सम्मान, और 1992 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त प्राप्त करने वाले श्री नरेश मेहता पा संपूर्ण औदीच्य समाज को गर्व है।
आपकी साहित्यिक क्रतियों में 9 काव्य जिनमें 'वन पारवी सुनो' ' बोलने दो भीड को ' और 'अरण्या ' आदि मुख्य है। 5 खण्ड काव्य की रचना की है जिनमें महाप्रस्थान , प्रवास पर्व , प्रार्थना पुरूष, शबरी आदि मुख्य है। 6 उपन्यास जिनमें ' यह पथ बन्धु था' हिन्दी का प्रमूख उपन्यासके रूप में मान्य हो चुका है, इसकी प्रष्ठभूमि मालवा है,' उज्जैन और मालवा की पष्ठभूमि पर एक वृहद उपन्यास दो भागों में ''उत्तर कथा '' के नाम से प्रकाशित हुआ है। धुमकेतु,एक श्रुति,प्रथम फाल्गुन आदि मूख्य है। तीन कहानी संग्रह है तथा 4 नाटक 'सनोवर के फूल', सुबह के घन्टे ,खण्डित यात्रायें आदि मुख्य है। इसके अतिरिक्त सात आलोचनात्मक चिन्तन है। आपने वाकदेवी, क्रति तथा दैनिक चौथा संसार का संपादन भी किया ।
शौक के ना पर पान, सुगन्धित तम्बाखु और इत्र, रूचियों में हिमालय यात्रा,संगीत,अध्यात्म ,तंत्र,ज्योतिष और बतरस । पूछने पर सदा अपनी अलिखित पंक्ति सुना देना ' ओ मेरे दाता दी है फकीरी तो देना संकल्प भी । श्री मेहता जी ने इस भौतिक संसार से 2 नवम्बर 2000 को विदाई ली । साहित्य के क्षेत्र में श्री नरेश मेहता का अभूतपूर्व योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा । आप औदीच्य ज्ञाति के उज्जवल रत्न हैं !
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