श्रीमती मालती रावल-- औदीच्य समाज की गोरवशाली महिलाएं ।

सांस्कृतिक अभिरूचि सम्‍पन्‍न- श्रीमती मालती रावल। 
औदीच्‍य समाज में अपनी सांस्कृतिक  रूचि के कारण सम्‍माननीय श्रीमती मालती रावल,‍ ललित कलाविद (नृत्‍य, वाध्‍य, संगीत, चित्रकला आदि में प्रवीण) होने के साथ एक सफल नाटककार, कहानीकार और ललित निबन्ध लेखिका हैं। 
 श्रीमती मालती रावल-बाल कहानियों
के लेखन के माध्‍यम से आप बाल 
मनोविज्ञान सम्‍मत, बाल रूचि को 
जाग्रत करने में सफल रही है।
बाल कहानियों के लेखन के माध्‍यम से आप बाल मनोविज्ञान सम्‍मत, बाल रूचि को जाग्रत करने में सफल रही है। सीधी, सादी, सरल, बोलचाल की भाषा में कही गई कहानियों के व्‍दारा, हिन्‍दी बाल साहित्‍य की श्री वृध्दि की है। 
''भेड चाल'' में सिंह खरगोश आदि वन्‍य जन्‍तुओ पर आधारित कहानीयां है । वहीं ''मीठी बोली'' में साधु एवं मन्‍त्री के बीच हुए संभाषणों से म्रदुभाषी होने के कमाल को बडी सफलता से प्रस्‍थापित किया गया है ''सच्‍ची लगन'' में बालकों के मन पर शिक्षा के महत्‍व की छाप डालने का सुन्‍दर सराहनीय प्रयास हुआ है। लगन का तो अपना महत्‍व है ही, जिससे सब मनोरथ सफल होते हैं। ''नानी कहो'' कहानी में ईसामसीह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बाल मन की उत्‍कठां को सही दिशा देने का प्रयत्न किया है, जिससे साम्‍प्रदायिक सौमनस्‍य का सहज संवर्धन होता है।
मालती जी की कहानियों में उपदेश मनोरंजरन की चाशनी में लिपटा हुआ है। वह शुष्‍क तथा नीरस रूप में नहीं परोसा जाना ही इनकी विशिष्‍टता है । 
श्रीमती मालती रावल प्रणीत ललित निबन्‍धों में भाव प्रविणता, मौलिक चिन्‍तन, तथा मनोरंजकता है। इनमें विषय, द्रष्टिकोण, और भावाभिव्‍यंजना का अनूठापन है। कोमल ललित भाषा में सामान्‍य विषय को भी असामान्‍य विलक्षणता प्रदान कर देना मालती जी की विशिष्‍ट कला है। 
'' काश हम 'ये'न होकर 'वो' होते" में उर्दू मिश्रित चुटीली भाषा में व्‍यंग्‍य के चटखारे चटूल बने हैं। अर्वाचीन 'काले धन' समानान्‍तर सत्‍ता पर एक करारी चोट है। 
''क्‍या अकेला पन अभिशाप है'' शीर्षेक निबन्‍ध में आरोपित और आत्‍मप्रेरित अकेलेपन का तुलनात्‍मक विवेचन कहीं चिन्‍तन को धार देता है। इस अनिवार्य नियति को बनाने का लेखिका व्‍दारा परामर्श सचमुच गहन गंभीर है।
''अहसास'' कहानी में विकलांग मीना के मानसिक परिताप की झांकी पाठक के मन का झकझोर देती है। '' समाज में नारी की भूमिका'' में प्राच्‍य पाश्‍चात्‍य नारी मुक्ति का गवेषणात्‍मक पर्यावलोकन करते हुए श्रीमती रावल ने भारतीय नारी के सांस्‍क्रतिक ईश्‍वरत्‍व को प्रकट कर अपना सुदक्षिणा रूप सहज ही प्रवर्तित किया है। '' सोचने की बात'' आधुनिक कोटस विधि का सुभाषित संकलन है। अपने में विचारोत्‍तेजक तथा उत्‍सवी स्‍पंदन पूर्ण है।
श्रीमती मालती रावल प्रतिभा सम्‍पन्‍न नाटककार भी है।  जिनके सामाजिक समस्‍याओं से अभिभूत नाटकों में भाषा शैली, पात्र चित्रण, उपयुक्‍त कथोपकथन तथा मंथीयता के सुन्‍दर समीकरण से एक अदभूत लोकोपकारी तथा लोक रंजक तत्‍वों का उदभास्‍वन होता है।
 श्रीमती मालती रावल एक औदीच्‍य गरिमा है।
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  •  डॉ जयाबेन शुक्‍ल से विगत अनेक वर्षो से औदीच्‍य समाज परिचित है। समाज की मुख्‍य पत्रिका औदीच्‍य बन्‍धु के संपादन कार्य से लम्‍बे समय से जुडी रही । इन्‍दौर में औदीच्‍य महिला मण्‍डल की गतिविधियों के संचालन में उनका महत्‍वपूर्ण स्‍थान रहा है, परंतु उनके सेवा भक्ति और त्‍यागमय व्‍यक्तित्‍व के विविध सोपान बहुत कम व्‍यक्ति ही जानते हैं। प्रारम्भिक किशोरावस्‍था में ही ---- ओर अधिक देखें-----------श्रीमती जयाबेन शुक्‍ल - औदीच्य समाज गौरव शाली महिला 
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